आयुर्वेद भारत की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है। जहाँ एकओर आयुर्वेद हमे जीवन जीने की शैली सिखाता है , वही दूसरी ओर वह हमे विभिन्न बीमारियों से निजात पाने के लिए अत्यंत प्रभावी चिकित्सा भी उपलब्ध कराता है। आयुर्वेद स्वयं में एक सम्पूर्ण विज्ञान है।
आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य का शरीर संपूर्ण ब्रम्हांड के साथ समन्वय में कार्य करता। जिस प्रकार ब्रह्माण्ड पांच तत्वों से मिलकर बना है , तरह हमारा शरीर भी पंचमहाभूतों से बना हुआ है। प्रकृति में जो चीजे घटित होती है, वह हमारे शरीर को भी प्रभावित करती है।
आयुर्वेदीय जीवनशैली हमें प्रकृति से संतुलन बनाकर रहने की सलाह देती है। इसी क्रम में आयुर्वेद में दिनचर्या और ऋतुचर्या का वर्णन किया गया है।
ऋतुचर्या यह शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है। ऋतू अर्थात मौसम तथा चर्या अर्थात रहन सहन का तरीका। इस तरह ऋतुचर्या का अर्थ बदलते हुए मौसम के अनुसार अपने खानपीने के तरीके में बदलाव से है।
ऋतुचर्या का महत्व -
प्रत्येक ऋतू का अपना स्वभाव होता है एवं वह अपने स्वभाव के अनुरूप ही हमारे शरीर पर अपना प्रभाव दिखाती है। उदाहरण के तौर पर शीत ऋतू में हम यदि आइसक्रीम का सेवन करे तो वह हमें रुचिकर महसूस नहीं होता। इसी तरह ग्रीष्म ऋतू में दोपहर के समय गर्म सूप पीना हमें अच्छा नहीं लगता। इस प्रकार खाद्य पदार्थो में रूचि/ अरुचि का अनुभव हमें मौसम या ऋतू के शरीर पर प्रभाव के कारण दिखाई देता है।
मौसम के अनुकूल खाद्य पदार्थो का सेवन हमारे शरीर के लिए हितकर होता है, इसके विपरीत प्रतिकूल पदार्थो का सेवन हमारे शरीर के लिए अहितकर होता है।
सूर्य की गति के अनुसार काल को दो भागो में विभाजित किया गया है - उत्तरायण तथा दक्षिणायन।
उत्तरायण -
उत्तरायण अति उष्ण काल होता है। अतः उत्तरायण में आने वाली ऋतुएँ भी उष्ण गुण वाली होती है। इस काल में सूर्य की किरणे बहुत गर्म होती है। गर्म किरणों की वजह से वातावरण की वायु भी बहुत गर्म और रूखी हो जाती है। सूर्य की उष्णता और वातावरण की रुक्षता पृथ्वी से स्निग्धता का शोषण कर लेती है और हमारे शरीर में भी रूखापन और कमजोरी जैसे लक्षण पैदा करती है। इस तरह सूर्य के उत्तरायण में होने से हमारे शरीर में दुर्बलता अति है।
उत्तरायण में आने वाली ऋतुएँ है -
शिशिर ऋतू - मध्य जनवरी से मध्य मार्च तक
वसंत ऋतू - मध्य मार्च से मध्य मई तक
ग्रीष्म ऋतू - मध्य मई से मध्य जुलाई तक
दक्षिणायन -
दक्षिणायन सौम्य काल होता है तथा इसमें आने वाली ऋतुएँ सौम्य गुण या फिर शीत गुण वाली होती है। सूर्य के दक्षिणायन होने पर वातावरणठंडा होता है। ठंडी हवाएं चलती है और वातावरण खुशनुमा होता है। धरती पर स्निग्धता बढती है, जिसके कारण हमारे शरीर में बल में वृद्धि होती है। और हम तंदुरुस्ती का अनुभव करते है।
दक्षिणायन में आने वाली ऋतुएँ है -
वर्षा ऋतू - मध्य जुलाई से मध्य सितम्बर तक
शरद ऋतू - मध्य सितम्बर से मध्य नवम्बर तक
हेमंत ऋतू - मध्य नवम्बर से मध्य जनवरी तक
विभिन्न ऋतुओ का अपने गुणों के अनुसार ही हमारे शरीर में स्थित तीनो दोषो वात, पित्त एवं कफ को भी प्रभावित करती है। इसलिए ऋतुओ के अनुसार खानपान में किया गया परिवर्तन हमारे शरीर के लिए लाभदायक होता है। वही दूसरी और ऋतू के विपरीत लिया गया आहार विहार हमारे शरीर के लिए हानिकारक सिद्ध होता है।
ऋतुचर्या का ज्ञान हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऋतुचर्या का ज्ञान हमें बदलते हुए मौसम के अनुसार अपनी जीवनशैली में बदलाव करने में मदद करता है।
ऋतुसंधि का ज्ञान हमे क्रमशः पुरानी ऋतू के आहार विहार का त्याग कर आने वाली ऋतू के आहार विहार को अपनी जीवनशैली में अपनाने में मददगार साबित होता है।
उचित ऋतुचर्या के पालन से मौसम जनित बीमारियों से शरीर का बचाव संभव है। साथ ही ऋतुचर्या पालन से हम आने वाले मौसम के प्रति अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि कर सकते है।
इस प्रकार ऋतुचर्या के माध्यम से हम सम्पूर्ण वर्ष अच्छी सेहत का लाभ ले सकते है।
आयुर्वेद अपनाये और स्वस्थ रहिये।
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